गाड़ीवान का उपदेश | Moral Stories For Kids In Hindi

आज हम आपको एक बहुत अच्छी और मजेदार Stories For Kids In Hindi गाड़ीवान का उपदेश बताएंगे। यह kahani आपको जरूर पसंद आएगी।

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गाड़ीवान का उपदेश

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प्राचीन काल में एक प्रसिद्ध राजा था। उनका नाम था जानश्रुति । वह एक धर्मात्मा राजा था। पूजा-पाठ में विश्वास करता था। तीर्थों का भ्रमण करता था। अपने राज्य में स्थान-स्थान पर देवालय बना रखे थे। यात्रियों के लिए राजमार्गों के किनारे धर्मशालाएं बना रखी थी जहाँ सारी सुविधाएं प्राप्त होती थी। सड़कों के किनारे यात्रियों की छाया के लिए घने वृक्ष लगवा रखे थे।

इन वृक्षों पर फल-फूल लगे रहते थे जो इन पर बसेरा डाले पक्षियों के काम आते थे। ऐसे में यात्रियों की यात्रा आरामदेय हो जाती थी। राजा जानश्रुति पुण्यवान था, अतः उसके पिता, पितामह तथा प्रपितामह सभी उसके पुण्य फल से जीवित थे। जानश्रुति का एक नाम पौत्रायण भी था।

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New Moral Stories For Kids In Hindi 2021

राजा जानश्रुति बहुत बड़ा दानी था। वह केवल दिखाने के लिए दान नहीं करता था बल्कि उसका दान प्रेम-पूर्वक, श्रद्धा-पूर्वक, होता था। अतिथियों के लिए बनी पाठशाला में खूब अन्न पकता था। भांति-भांति के पकवान और मिष्टान्न बनते थे। जाना-अनजाना हर व्यक्ति इस पाकशाले से छककर भोजन ग्रहण करता था और राजा को दुआएँ देता था।

राजा जानश्रुति बड़े-बड़े यज्ञ भी करता था। ये यज्ञ महीनों चलते थे। इनमे बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि तथा विद्वान आमंत्रित होते थे। यज्ञ के समय राजा यज्ञ कराने वाले ब्राह्मणों को मुंहमांगी दक्षिणा प्रदान करता था। यज्ञ में प्रयुक्त सामग्रियाँ उच्चकोटि की होती थी।

यज्ञ के अवसर पर भंडारा होता था, जिसमे राज्य और राज्य के बाहर के लोग भी कई-कई दिनों तक छककर खाना खाते थे। जाति-पाँति का कोई भेद नहीं था। नीची कही जाने वाली जातियों को भी बिना भेदभाव के स्वादिष्ट भोजन दिया जाता था।

राजा का नाम चारों दिशाओं में फैल गया। उसके यश का विस्तार हो रहा था।

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राजा को अहंकार नहीं था किन्तु वह इतना समझता था कि वह जिस प्रकार के कार्य करता था उस प्रकार के कार्य किसी और राजा के लिए सम्भव नहीं था। इतना दान-धर्म करना किसी और के वश की बात नहीं थी। विशेषकर इतने विशाल यज्ञ कराने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता था। ऐसे यज्ञों में राजकोष रिक्त और प्रायः खाली हो जाता था और उसको पुनः भरना आसान नहीं होता था। किन्तु एक दिन राजा को एक ऐसी घटना का सामना करना पड़ा कि वह आश्चर्य से भर आया।

एक दिन राजा के महल में दो पहुंचे हुए महात्मा पधारे। इन्होने आपस में वार्तालाप आरम्भ किया।

पहला महात्मा बोला, इस राजा जानश्रुति की कीर्ति तो चारों दिशाओं में फैल गई है। यह एक सफल प्रशासक तो है ही, दान, यज्ञ आदि के कारण इसकी आध्यात्मिक शक्ति भी बहुत बढ़ गई है। मुझे तो लगता है कि इस राजा के समक्ष बहुत महर्षि और राजर्षि तक नहीं टिक सकते। इसके धार्मिक कार्य इसे स्वर्ग से भी ऊँचे लोकों में ले जाएंगे अथवा यह ब्रह्मलीन होकर मोक्ष ही प्राप्त कर लेगा।

दूसरा महात्मा बोला–“तुम व्यर्थ की बाते करते हो। इसका कारण यह है कि तुम गाड़ीवान ऋषि को नहीं जानते। उससे बड़ा ऋषि-महर्षि तो कोई शायद ही हो। वह इतना पुण्यवान है कि जो कोई कुछ अच्छा कार्य करता है उसका आधा फल उसी को मिल जाता है। “

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पहले महात्मा ने आश्चर्य से कहा. “गाड़ीवान ऋषि इतना पहुंचा हुआ है !”

दूसरा बोला, “और क्या ? गाड़ीवान होते हुए भी उसकी तपस्या इतनी विकट है कि उसने यह अधिकार प्राप्त कर लिया है। “

राजा उस दिन रात्रि-जागरण कर महल और उसके आस-पास घूम रहा था। उसका लक्ष्य भी यह जानना था कि लोग उसके बारे में क्या सोचते है ? प्रजा की भलाई में कोई कमी तो नहीं रह गई जिसको पूरा करना आवश्यक हो ! राजा ने दोनों महात्माओ की बात सुन ली और सोचा उसका इतना धर्म-कर्म. यज्ञ-दान किस काम का ? वह तो एक गाड़ीवान ऋषि के पासंग में भी नहीं है।

सुबह होते ही उसने अपने सारथि को बुलाकर पूछा, “तुम गाड़ीवान ऋषि को जानते हो ?”

सारथि बोला, “मैं ऐसे ऋषि को नहीं जानता हूँ जो गाड़ीवान भी हो और ऋषि भी। “

राजा ने कहा, “नहीं जानते हो तो जानो और इस गाड़ी वाले ऋषि का पता करो। अभी रथ लेकर जाओ और जितना शीघ्र हो सके उसे ढूंढो। “

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“जैसी आज्ञा ” , सारथि ने कहा और रथ लेकर उस ऋषि को ढूंढने निकल गया।

राजा व्याकुलतापूर्वक उसकी प्रतीक्षा करता रहा। सारथि दूसरे दिन शाम तक लौटा। उसका मुँह लटका हुआ था। राजा ने उसे देखते ही समझ लिया कि असफलता ही इसके हाथ लगी। उसने सारथि से पूछा, “तुम्हारे चेहरे से लगता है कि तुम ऋषि का पता नहीं लगा सके। “

सारथि ने कहा, “महाराज का सोचना ठीक है। मैंने बहुत प्रयास किया किन्तु गाड़ीवान ऋषि का पता नहीं लगा सका । “

राजा को कुछ संदेह हुआ और उसने पूछा , “तुमने उस ऋषि को कहाँ-कहाँ ढूंढा ?”

सारथि ने कहा, “यह पूछिए कि कहाँ नहीं ढूंढा। महलो, राजमहलों से लेकर बड़े-बड़े महर्षियों-राजषिर्यों के स्थानों को भी छान मारा। महानगरों -नगरों में ढूंढा किन्तु किसी ने कही इसके सम्बन्ध में नहीं बताया। “

राजा झल्लाया , ” ढूंढने का यह कोई तरीका नहीं था। एक गाड़ीवान ऋषि का महलों, राजमहलों और नगरों-महानगरों से क्या सम्बन्ध ? उसे ढूंढना था तो गरीबो की बस्तियों में ढूंढते। गाड़ीवानों के ठिकानों पर ढूंढते। मनुष्यों से रहित एकांत स्थानों में ढूंढते। सुबह पुनः अपना रथ लेकर निकलो और जहाँ-जहाँ मैंने कहा है, वहां-वहां उस ऋषि को ढूंढो। “

सारथि दूसरे दिन सुबह ही रथ लेकर निकला। दिन-भर राजा ने जिन स्थानों पर बताया था उन पर उस ऋषि को ढूंढता रहा। वह निराश ही होने वाला था कि थोड़ी दूर पर खुले मैदान में एक बैलगाड़ी के नीचे एक व्यक्ति अपने शरीर के दाद खुजलाते हुए बैठा था।

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सारथि उसके पास पहुंचकर बोला, ” क्या आप ऋषि है ?”

गाड़ीवान बोला, “हां, मुझे ही गाड़ीवान ऋषि के नाम से पुकारते है। “

सारथि ने कहा. “महाराज ने आपको याद किया है। आप कृपया इस रथ पर सवार होकर राजा को दर्शन देने चलने की कृपा करे। “

गाड़ीवान ऋषि ने कहा, “मैं किसी राजा-महाराजा के यहाँ क्यों जाऊँ ? जिसको मुझसे मिलना हो वह स्वयं मेरे पास आए। “

सारथि ने बहुत आग्रह किया किन्तु ऋषि अपने स्थान पर डटे खाज ही खुजलाते रहे। गाड़ी के नीचे से उठने का नाम नहीं लिया ।

सारथि राजा के पास लौट गया। उसने ऋषि के ढूंढ निकालने की बात कही। राजा बहुत प्रसन्न हुआ और पूछा, “तो उस ऋषि को रथ पर बैठाकर ले क्यों नहीं आए?”

सारथि ने ऋषि द्वारा कही गई बात को उसी रूप में रख दिया और जोड़ा, “मैंने उस ऋषि को रथ पर लाने का बहुत प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हुआ। अब एक ही रास्ता बचता है। “

राजा ने पूछा, “क्या ?”

“आप स्वयं चलकर उस ऋषि से मिलिए। उसके यहाँ आने की बात भूल जाइए।”

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राजा तैयार हो गया और अपने साथ छः सौ गौएँ, एक रत्न-माला और खच्चरों का एक रथ भेंट में लेकर गाड़ीवान ऋषि के पास पहुंचा और उन्हें प्रणाम कर बोला, “महात्मन ! इस तुच्छ भेंट को स्वीकार कीजिए और मुझे यह बतलाने की कृपा कीजिए कि आप किस देवता की उपासना करते है कि आपको इतनी बड़ी सिद्धि प्राप्त हो गई !”

ऋषि क्रोध से भर आए और बोले, “अरे मुर्ख ! इन गौवों और हार तथा इस रथ से इस गाड़ीवान को क्या लेना-देना ? तुम जैसे आए हो वैसे लौट जाओ। “

राजा के पास कोई उपाय नहीं था। वह लौट गया पर दूसरे दिन फिर एक हजार गौएँ-रत्नों की माला, खच्चरों का रथ तथा अपनी सुन्दर कोमल बालिका को लेकर ऋषि के पास पहुंचा और बोला, “यह सब कुछ आपके लिए ही है। मुझे बताइए कि आप किस देवता की उपासना करते है ?”

ऋषि ने बालिका के मुँह को अपनी ऊँगली से उठाकर राजा को सम्बोधित किया, “मुर्ख हो। मुझे इन सभी भेंटों से कोई मतलब नहीं। इस बालिका के कारण मुझे बोलना पड़ता है। बालिका के कोमल और भोले रूप को देखकर मुझे तुम्हे उपदेश देना पड़ रहा है। मैं किस देवता की उपासना करता हूँ, यह बात तुम मेरे इस कथन से स्वयं समझ जाओगे।

“देखो यहाँ वायु ही सब कुछ है। यह सब कुछ को अपने अंदर संभालने की शक्ति रखती है और यह सर्वत्र व्याप्त है। इसके बिना कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता। साथ ही जो कुछ समाप्त होता है वह भी वायु में ही लौट जाता है। जब आग बुझती है तो वह वायु में ही लौट जाती है। पानी सूखता है तो वह भी वायु में ही लौट जाता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में वायु ही प्रधान है। इससे अधिक अब और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। ” यह कहकर ऋषि मौन हो गए और राजा संतुष्ट होकर उपहारों के साथ राजमहल को लौट गया।

तो कैसी लगी यह New Moral Stories For Kids In Hindi आप सभी को ऐसे ही कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।

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