दोस्तों आज हम आपको Ninyaanave ka Chakkar मजेदार Hindi Kahani बताने जा रहे है। ” यह कहानी एक लकड़हारा और उसकी पत्नी जो कि बहुत गरीब थे। यह कहानी आप सभी पढ़िए यह कहानी आप सभी को जरूर पसंद आएगी।
निन्यानवे का चक्कर | Ninyaanave Ka Chakkar
( Best Hindi kahaniya )
बात पुराने दिनों की है। एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ झोपड़ी में रहता था। उसने झोपड़ी के चारों ओर कच्ची दीवार खींच रखी थी। चारदीवारी के भीतर एक नीम का पेड़ था।
लकड़हारा रोज जंगल जाता। लकड़िया काटता। गट्टर बाँध कर लाता। उसे एक आने में बेच देता। जो मिलता उससे खाने का ले आता। उसकी पत्नी उसका रोज इंतजार करती। लकड़हारे के आते ही दोनों खाना खाते और दुःख सुख की बाते करते। रोटी खाकर लकड़हारा नीम के पेड़ निचे सो जाता और उसकी पत्नी घर के दूसरे कामो में लग जाती।
इस खेल को रोजाना एक सेठानी देखती। उसकी हवेली लकड़हारे के घर की झोपड़ी से सटी हुई थी। सेठानी मन में सोचती की ये कितना सुखी जीवन बिता रहे है इन्हे किसी प्रकार की चिंता नहीं हैं। उधर हमारे सेठ जी देर रात घर आते है और रोटी खाकर सो जाते हैं।
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एक दिन इस बात को सेठ जी को बताती। सेठ ने सेठानी को समझाया की यह लकड़हारा अब तक निन्यानवे के चक्कर में नहीं पड़ा। जिस दिन यह इस चक्कर में पड़ गया, सब कुछ भूल जायेगा। निन्यानवे की चक्कर की बात सुनकर सेठानी चकरा गयी। उसने पूछा, “भला यह निन्यानवे का चककर क्या होता है ?” सेठजी ने लाख समझाया, “इसे मत पूछो। अपना नुकसान हो जायेगा। “
पर सेठानी हाथ धोकर पीछे पड़ गयी। सेठजी ने कहा ,”कल शाम को आऊंगा। तू निन्यानवे रुपये थैली में भरकर रखना। “सेठानी तुरंत तैयार हो गयी।
दूसरे दिन शाम को सेठानी ने बताया की देखो, लकड़हारा और उसकी पत्नी चक्क माल खा रहे हैं। आपस में प्यार से बाते कर रहे हैं। सेठजी हा – हूँ करते सारा तमाशा देखते रहे। थोड़ी देर में लकड़हारा सो गया। खर्राटे भरने लगा। तभी सेठजी ने मौका पाकर रुपयों से भरी थैली निचे फेंक दी।
चांदी के रुपयों से भरी थैली लकड़हारे के पास गिरी।खन्न की आवाज़ सुनकर लकड़हारा जाग गया। आवाज़ सुन उसकी पत्नी भी भागी हुई आई और उसने थैली उठाकर देखा – रुपये ही रुपये। दोनों बोले ,”भगवान ने छप्पर फाड़ कर रुपये भेजे हैं। “दोनों फुले नहीं समाए और रुपये गिनने लगे। इतने सारे रुपये देख दोनों की आँखे फटी रह गईं। उन्होंने बीस -बीस सिक्कों की ढेरी बनाई ,पर एक ढेरी में उन्नीस सिक्के ही रह गए। एक बार गिना ,दो बार गिना। बार बार गिना। पर सिक्के एक काम सौ ही रहे। दोनों बात करते-करते उलझन में पड़ गए कि यदि एक रुपया और होता, तो पूरे सौ हो जाते।
अब समस्या यह आई कि इन रुपयों को आखिर कहाँ रखे ? लकड़हारा कहने लगा कि मटके में रख लें। पर पत्नी का सुझाव था कि जमीन में गाड़ दें। इसी बातचीत में उन दोनों की नींद उड़ गई। यानि निन्यानवे का चक्कर शुरू हो गया।
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लकड़हारा बोला कि यदि एक रुपया और होता तो पुरे सौ हो जाते। उसकी पत्नी ने भी कहा – बस ,एक की कसार गई। लकड़हारा कहने लगा कि इसे मैं पूरा करके ही छोडूंगा। उधर सेठ यह तमाशा सेठानी को दिखाकर अगले दिन दुकान पर चला गया। जाते -जाते यह कहता गया कि अब देखकर बताना क्या-क्या होता हैं ?
दूसरे दिन लकड़हारा जंगल में लकड़ियां काटने गया। उसने लकड़ियां काटीं। बाजार में एक आने में बेचीं। आज वह घर के लिए आटा-दाल कुछ नहीं लाया। उसने इक्कनी लाकर अपनी पत्नी को दी और उसको कहा कि इसे थैली में डाल दे। अब हमारे पास निन्यानवे रुपये एक आना हो गए। पत्नी ने राजी होकर थैली में इक्कनी डाल दी। पर उस दिन घर में चूल्हा नहीं जला। चक्क माल नहीं बना।
भूका लकड़हारा खाट पर लेट गया। पर नींद नहीं आई। करवटे बदलता रहा पेट में चूहे कूद रहे थे। उधर सेठानी इस खेल को देख रही थी। यही हाल दूसरे दिन भी रहा। तीसरे दिन तो लकड़हारा खाट से उठ ही नहीं पाया। दो दिन का भूखा आखिर लकड़ियां काटने कैसे जाता ! हाथ-पेअर साथ नहीं दे रहे थे। उसकी पत्नी ने पूछा , “आज जंगल नहीं जाना क्या?” लकड़हारा अनमने मन से उठा। वह जंगल तो गया, पर वहां लकड़ियां नहीं काट पाया। भूक के मारे शरीर का हाल बेहाल था। लकड़हारा खाली हाथ वापस लौट आया। निन्यानवे को सौ करने के चक्कर में उसका जीना दूभर हो गया। सेठानी चुपचाप सब कुछ देखती रहीं।
रात को सेठजी घर लौटे। उन्होंने सेठानी से पूछा, “बता री परमेश्वरी, तेरे पड़ोसी का क्या हालचाल है?” भला सेठानी क्या कहती ! सर निचे की ओर झुका लिया। उसने धीरे-धीरे पड़ोस का सारा कच्चा चिट्ठा सुनाया।
सेठजी ने कहा, “लकड़हारे के तो निन्यानवे में ही यह हाल है। हम तो लाखों में खेलते हैं। अब हमारा क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगा ले। खैर, तूने अपने निन्यानवे रुपये का आखिर नुकसान करा ही लिया।” सेठानी बोली, “पर अच्छा हुआ। मुझे समझ तो आ गयी। अब मैंने अपनी आंखो से देख लिया कि यह निन्यानवे का चक्कर क्या होता है। ”
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