सच्ची सुंदरता | Khargosh ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आपको बताएंगे एक नई और मजेदार कहानी Khargosh ki Kahani है। यह Khargosh ki Kahani है जिसमे एक सुन्दर सी खरगोश जिसको अपने सुंदरता पर अत्यंत घमंड हो गया था। तो दोस्तों आप सभी इस Khargosh ki Kahani in Hindi को पढ़िए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को share करिए।

सच्ची सुंदरता

(Khargosh ki Kahani)

दंडकारण्य में भास्कर नाम का एक खरगोश रहता था। उसकी एक ही बेटी थी। वह बड़ी सुन्दर थी। गुलाबी और सफेद रंग, रोयेदार शरीर, लम्बे कान, मोटी पूंछ, गुलाबी प्यारी आँखे, जो भी उसे देखता मुग्ध हो जाता। भास्कर ने बड़े प्यार से उसका नाम रखा था — रूपा। वास्तव में वह अपने नाम के अनुरूप ही थी।

इतना सम्मान पाकर रूपा को अभिमान होने लगा। वह अपने सामने सभी को तुच्छ समझने लगी। घमंड में भरकर वह दूसरों का अपमान भी करने लगी। एक दिन जब चुहिया उसके साथ खेलने आई तो अपनी आँखे चढ़ाकर रूपा बोली — “ओह ! मैं तुम जैसे गंदे जीवों के साथ नहीं खेलूंगी। न ही मैं तुम्हे सहेली बना सकती हूँ। ओह, क्या रूप-रंग पाया है, मटमैला-घिनौना….। जाओ तुम तो अपने जैसे में ही शोभा पाओगी। “

प्रीति को रूपा की यह बात बहुत ही बुरी लगी। उसने कठोर उत्तर भी देना चाहा, पर शालीनतावश बस इतना ही कह पाई — “रूपा ! हम सब तो बस इस शरीर को गुणों से ही सुन्दर बना सकते है। “

एक दिन रूपा अपनी सहेलियों के साथ अमलताश के पेड़ के नीचे बैठी थी। तभी उसकी निगाह पेड़ पर चढ़ते हुए गिरगिट पर गई। उस गिरगिट को देखते ही वह अपने नन्हें-नन्हें दांत निकालकर हंस पड़ी और बोली — “वाह भाई वाह ! क्या रूप पाया है जनाब ने।”

गिरगिट ने जब यह सुना तो उसे बड़ा ही गुस्सा आया। गुस्से में अपनी पूंछ फटकार कर, आँखें निकालकर, रंग बदलकर वह जोर से बोला– “अरी घमंडी !जरा ठीक से बात कर, सारा रंग-रूप तेरी ही बपौती नहीं है। छह-सात रंग बदलने का वरदान ईश्वर ने बस मुझे ही दिया है। घमंड करना बाद में, पहले जरा मेरी तरह रंग बदलकर तो दिखा। “

रूपा कुछ कहने ही जा रही थी, पर गिरगिट की क्रोध से भरी आँखें देखकर उसकी सहेली ने उसे चुप कर दिया।

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एक दिन हाथी का बच्चा विशु केले के नीचे बैठा आराम कर रहा था। रूपा उसकी पीठ पर चढ़ गई और फुदकते हुए बोली — “वाह -वाह ! नाक हो तो विशु जैसी जमीन झाड़ती, आसमान छूती। पैर हो तो ऐसे — लगे जैसे मकान के चार खम्भे ही चले आ रहे है। दांत हो तो ऐसे तलवारों जैसे — मुँह फाड़कर निकलते हुए…..।”

रूपा अभी कुछ और ही बोल रही थी कि विशु ने गुस्से में भरकर उसे अपनी सूंड से उठाया और दूर फेंक दिया। वह चिंघाड़कर बोला — “और यदि कोई हो तो विशु जैसा गलत करने वाले को तुरंत दंड देने वाला। “

विशु ने रूपा को इतने जोर से फेंका था कि वह केले के पेड़ से बहुत दूर एक गहरे गड्ढे में जा पड़ी। बरसात के दिन थे, गड्ढे में खूब पानी भरा था। रूपा उसमे डूबने लगी। तभी उसकी निगाह गड्ढे में रहने वाले राजेश मेंढक पर पड़ी। वह हाथ जोड़कर और रिरियाकर बोली — “भैया !मुझे अभी इस गड्ढे में से निकाल दो , नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”

मेंढक को रूपा पर दया आ गई। उसने उसे अपनी पीठ पर बिठाया और एक ही छलांग में उसे साथ लेकर गड्ढे से बाहर निकल आया।

गड्ढे से बाहर निकलकर रूपा कराह उठी। उसकी एक आँख बुरी तरह दर्द कर रही थी, खुल ही नहीं रही थी। जैसे-तैसे उसने घर जाने के लिए कदम बढ़ाए, पर यह क्या ? उसका दाहिना पैर तो आगे बढ़ ही नहीं रहा था। उससे एक कदम भी नहीं चला जा रहा था।

रूपा सोच भी न पाई कि वह कैसे घर जाए ? तभी उसकी निगाह सामने से आते मेंढक , गिलहरी और बतख के झुण्ड पर पड़ी। उसने लाख अनुनय-विनय की, पर उनमे से कोई भी उसे घर तक छोड़ जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। उन सभी को अपना अपमान याद आ रहा था। वह अपमान रूपा ने घमंड में भरकर समय-समय पर किया था। सच है कि घमंडी की सहायता करने के स्थान पर सभी मुँह फिरा लेते है।

आखिर हारकर रूपा अकेले ही लंगड़ाती हुई घर की ओर चली। शिकारी कुत्तो, लोमड़ी आदि से बचती-बचाती घंटो में वह घर पहुँच पाई। उसके माता-पिता उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उसे देखते ही वह बोले– “अरे बिटिया ! इतनी देर से कहाँ रह गई थी तुम ?”

रूपा ने रोते-रोते सारी बात बताई। भास्कर तुरंत उसे लेकर प्रसिद्ध डॉक्टर चिन्मय खरगोश के यहाँ गया। चिन्मय ने रूपा की आँख से एक लम्बा कांटा निकाला। कांटा निकलते ही खून की धार छूट पड़ी। बड़ी मुश्किल से खून निकलना बंद हुआ। पैर पर भी प्लास्टर बांधना पड़ा, क्योंकि हड्डी टूट गई थी।

दो महीने बाद रूपा का पैर तो ठीक हो गया, पर उसकी आँख हमेशा के लिए खराब हो गई थी। अंत में चिन्मय डॉक्टर ने भी कह दिया था — “इसकी आँखे को अब कोई ठीक नहीं सकता है बड़े से बड़े डॉक्टर भी नहीं ?”

डॉक्टर की बातें सुनकर घर आकर रूपा फुट-फुटकर रोने लगी। जिस सुंदरता पर उसे बहुत गर्व था , वही अब सदैव के लिए समाप्त हो गई थी। रूपा कानी हो गई थी। आँख के कारण उसकी सारी की सारी सुंदरता नष्ट हो गई।

निरंतर आंसू बहाती हुई रूपा को भास्कर समझाने लगा — “बेटी ! शरीर की सुंदरता तो कभी भी नष्ट हो सकती है। उस पर गर्व करना मूर्खता ही है। हम स्वयं नहीं जानते कि हमारा सुन्दर शरीर कल किस स्थिति में होगा ? न जाने मेरे साथ क्या हो रहा है कौन से कर्मों का फल मेरे को मिल रहा है ?”

पिता की बाते सुनकर रूपा सिसकते हुए बोली — “हाय ! मैं तो कुरूप हो गई। अब कौन मुझे प्यार करेगा ?”

रूपा की माँ उसे समझाते हुए बोली — “बेटी ! शरीर की सुंदरता वास्तविक सुंदरता नहीं है और शरीर की कुरूपता भी वास्तविक कुरूपता नहीं है। सच्ची सुंदरता होती है गुणों में, व्यवहार में। तुम अपने मन को , व्यवहार को सुन्दर बनाओ। तब सभी तुम्हे प्यार करेंगे और सदैव-सदैव के लिए सम्मान भी करेंगे। हमेशा याद रखना कि अच्छा स्वभाव सुंदरता की कमी को सहज ही पूरा कर देता है। उसके आकर्षण में बंधकर सुंदरता की याद भी नहीं आती, परन्तु सौंदर्य की पराकाष्ठा भी अच्छे स्वभाव की कमी को पूरा नहीं कर सकती। “

भास्कर खरगोश भी रूपा को समझाते हुए बोला– “स्वच्छता , सादगी और सुरुचि ये तीनों गुण जहाँ आ जाते है , वहां सुंदरता भी दिखाई देने लगती है। तुम बाहरी चमक-दमक में न पड़ो , इसी सच्ची सुंदरता को अपनाने का प्रयत्न करो। “

रूपा अपने नथुने सिकोड़कर, पूंछ हिलाते हुए बोली — “हां ! आप ठीक कहते है। फिर वह अपने आंसू पोंछकर धीरे-धीरे वहां से चली गई।” “मुझे अब अपने व्यवहार को सुन्दर बनाना होगा। ” वह सोचती जा रही थी।

तो दोस्तों कैसी लगी यह Khargosh ki Kahani आप सभी को ? हमे उम्मीद है यह Khargosh ki Kahani आप सभी को जरूर अच्छी और मजेदार लगी होगी। दोस्तों ऐसे ही Hindi kahani पढ़ने के लिए हमारे website पर आते रहिए और इस कहानी पर comment करके हमे motivate करिए।

गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।

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