आज हम आपको फिर से कुछ ऐसे Samanya Vigyan (Interesting Facts in Hindi) और Amazing Facts in Hindi About Science के बारे में बताएँगे जिसे पढ़कर आपको उनके द्वारा विचित्र ज्ञान को जान पाएंगे।
Samanya Vigyan 1
धुएँ से आँखों में आँसू क्यों आ जाते है ?
आँखे बहुत महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी पदार्थ जो की बेकार है ये उसको बाहर निकलने के लिए तरल पदार्थ, जिसे आँसू कहते है, बहाना प्रारंभ कर देती है। धुँआ ऐसा पदार्थ है जिसके संपर्क में आने पर आँखों की रक्तवाहिनियां फैल जाती है और दुखने लगती है। इसके साथ ही आँखों में जलन भी होती है जिसके कारण आँखों से आँसू आने लगता है। इसलिए धुएँ से आँखों में आँसू आ जाते है।
Samanya Vigyan 2
खाना पकनेवाली गैस द्रव होती है तो गैस कैसे बन जाती है?
खाना पकाने की गैस LPG कहलाती है। इसका पूरा नाम Liquefied Petroleum Gas है। यह पेट्रोलियम से मिलनेवाले हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होती है। सामान्यतः इसमें प्रोपेन और ब्यूटेन गैसें होती है। इनके साथ-साथ प्रोपीन, ब्यूटीन तथा मीथेन आदि अन्य हाइड्रोकार्बन भी मिले रहते है।
Samanya Vigyan Part 1 पढ़े – Samanya Vigyan Ke Rochak Tathya
इस गैस में कोई गंध नहीं होती लेकिन यह बहुत अधिक ज्वलनशील होती है। गंधहीन होने के कारण इसके रिसने पर इसका पता लगाना बहुत कठिन होता है। रिसने पर पता न चलने पर आग लगने की दुर्घटना आदि हो सकती है। इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से और गैस की रिसन पर पता लग जाने के लिए इसमें गंधयुक्त थायोएल्कोहल मिलाया जाता है। इसी के कारण हमे रिसने पर गंध आती है।
अत्यधिक दबाव पर भरने या रहने पर द्रव रूप में होती है और दबाव कम होने पर पुनः गैस में बदल जाती है। चूँकि सिलेंडर में यह अधिक दबाव पर भरी जाती है, अतः सिलेंडर में द्रव रूप में होती है और जैसे ही गैस का वाल्व खोलते है तो दबाव कम हो जाता है और यह गैस में परिवर्तित होकर हमारे चूल्हो में जलने लगती है।
Samanya Vigyan 3
Laughing Gas क्या है ? इसे सूँघने से हँसी क्यों आने लगती है ?
ब्रिटेन के Joseph Priestley नामक वैज्ञानिक ने 1772 ई. में नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) गैस का अविष्कार किया था। इस गैस का उपयोग हेरेस वाल्स द्वारा 1844 ई. में निश्चेतक के रूप में किया गया और तब से यह बिना दर्द अनुभव किए दाँत निकालने के लिए निश्चेतक की तरह उपयोग में आने लगी। धीरे-धीरे इस गैस अधिक मात्रा में सूँघ लेता है तो वह उत्तेजित होकर जोर-जोर से हँसने लगता है। अपने इस गुण के कारण ही नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) को हँसानेवाली या Laughing Gas के नाम से पुकारा जाने लगा।
इसे सूँघने से हँसी आने का कारण यह है कि यह गैस रक्त में मिलकर मस्तिष्क के हँसी केंद्र को उत्तेजित कर देती है। इस उत्तेजना के कारण ही जोर-जोर से हँसी आती है। इस गैस का असर बहुत जल्दी होता है और बहुत कम समय में समाप्त भी हो जाता हैइसलिए इसका असर समाप्त होते ही मनुष्य शांत भी जल्दी हो जाता है।
Samanya Vigyan 4
मिट्टी के बर्तन या ईंटे पकाई जाने पर लाल रंग की क्यों हो जाती है ?
मिट्टी के बर्तनों या ईंटो को पकाने पर उनके लाल रंग का हो जाना इस बात पर निर्भर करता है कि मिट्टी में कौन-कौन-से पदार्थ मिले हुए है। सामान्यतः मिट्टीमे अन्य पदार्थो के साथ-साथ लोहे के यौगिक भी मिले होते है। इसलिए मिट्टी के बने बर्तनों या ईंटो को जब आग में पकाया जाता है तो लोहे के यौगिक लौह ऑक्साइड में बदल जाते है। लौह ऑक्साइड का रंग हल्का भूरा-सा होता है। जब यह सिलिका के साथ मिट्टी में मिले अन्य यौगिकों के साथ क्रिया करता है तो बर्तन या ईंटे लाल रंग की हो जाती है।
Samanya Vigyan 5
ध्यान से देखने पर घरेलू मक्खियाँ अपनी टांगों को रगड़ती पाई जाती है। वे ऐसा क्यों करती है ?
मक्खियाँ अपने भोजन की खोज स्वाद की टोह के आधार पर करती है। इस कार्य में उनकी संवेदनशील अगली टाँगे और शुंडिका की नोक प्रमुख भूमिका निभाती है। इन संवेदनशील अंगों द्वारा ठीक से कार्य किए जाने के लिए इनकी तेजी से पूरी सफाई की जानी आवश्यक होती है। अतः मक्खियाँ टाँगों और शुंडिका की सफाई के लिए उन्हें नियमित रूप से रगड़ती रहती है।
यदि आप मक्खियों को और अधिक ध्यान से देखे तो आप पाएँगे कि वे टाँगों के अलावा सिर, पंख और उदर की सफाई भी करती है। शुंडिका और टाँगों की सफाई के लिए इनके नजदीकी अंग सिर, पंख और उदर की सफाई भी आवश्यक होती है, अन्यथा टाँगें और शुंडिका ठीक से साफ नहीं रह पाएँगी और परिणामस्वरुप मक्खियों को अपने भोजन की तोह लेने में बाधा पड़ेगी। इसी बाधा को दूर करने के लिए मक्खियाँ अपनी टांगों को नियमित रगड़ती रहती है।
Samanya Vigyan 6
छिपकलियाँ दीवारों पर चिपककर कैसे चल लेती है ?
छिपकलियों को दीवारों पर चिपककर चलते देखकर आश्चर्य होना स्वाभाविक है और यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है कि वे गिरती क्यों नहीं है। छिपकलियों के पैर छोटे-छोटे तथा शरीर पतला-लम्बा बेलनाकार जैसा होता है। इनके पैरों की बनावट कुछ ऐसी होती है कि जब वे दिवार के संपर्क में आते है तो पैर और दीवार के बीच निर्वात पैदा हो जाता है।
इधर बाहर की हवा का दबाव भी पैरों पर पड़ता है। इस दबाव और निर्यात के कारण छिपकलियाँ दीवारों पर चिपककर चलती रहती है। कभी-कभी छिपकलियाँ दीवालों से गिरती भी देखी जाती है। जब किन्ही कारणों से दीवार और पैर के बीच निर्वात समाप्त हो जाता है तो चिपकने की स्तिथि समाप्त हो जाती है और वे गिरती भी देखी जाती है, लेकिन ऐसा कभी-कभी ही होता है।
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