दोस्तों आज हम आपको एक Bhalu ki Kahani जिसका शीर्षक है “भालू की बहादुरी” है। यह कहानी बहुत ही मजेदार होने के साथ साथ शिक्षाप्रद भी है। भालू की बहादुरी से हमे पता चलता है कि वफादारी क्या होती है ? तो चलिए आप सभी इस Bhalu ki Kahani को पढ़िए और इसका आनंद लीजिए।
भालू की बहादुरी
(Bhalu ki Kahani Hindi)
भगेलू नाम का एक मदारी था। एक दिन वह जंगल के पास से जा रहा था। उसने देखा कि पगडंडी पर भालू का एक छोटा सा बच्चा पड़ा हुआ है। उसके दोनों पैरों में चोट लगी थी, खून बह रहा था। यह देखकर भगेलू को दया आ गई। उसने अपनी धोती फाड़कर भालू के बच्चे की पट्टी बांधी, देर तक उसका सिर सहलाता रहा। तब तक खून बहना भी कुछ कम हो गया था।
भगेलू आगे चले के लिए उठ खड़ा हुआ। जैसे ही वह दो-चार कदम बढ़ा होगा कि भालू का बच्चा गुर्राकर उसे बुलाने लगा। भगेलू समझ गया कि भालू का बच्चा नहीं चाहता है कि वह वहां से जाएं , पर उस जंगल में भला भगेलू कितनी देर और रुक सकता था ? इसलिए उसने साईकिल पर पीछे भालू के बच्चे को बाँधा और घर की ओर चल पड़ा।
घर जाकर भगेलू ने जैसे ही भालू के बच्चे को उतारा कि पड़ोस के बहुत से बच्चे उसे देखने के लिए इकट्ठे हो गए। भालू का बच्चा इतनी साड़ी भीड़ को पहली बार अपने आस-पास देख रहा था। वह गुर्राने लगा। भगेलू समझ गया कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा है। “जाओ बच्चो ! फिर आना नहीं तो काट खाएगा। “
यह कहकर भगेलू ने सभी बच्चो को भगा दिया।
भगेलू ने भालू के बच्चे को खूब पुचकारा, उसके घाव पर दवा लगाई और बहुत सी चीजें खाने के लिए दी। भगेलू के पास कई बंदर थे, जिन्हे नाचकर खेल दिखाया करता था। उन्ही के पास उसने भालू के बच्चे को भी बांध दिया।
जल्दी ही भालू का बच्चा सभी से खूब हिलमिल गया। सारे बंदर उसके पक्के मित्र बन गए। वह उनसे खूब बातें करता। भगेलू तो उसे बहुत ही प्यार करता था। वह उसे खाने के लिए अच्छी -अच्छी चीजें देता। भगेलू ने प्यार से उसका नाम रखा था — मोती। उसने मोती को खूब सुन्दर नाच भी सीखा दिया था। उसके पैरों में घुँघुरु बांध दिए थे। भगेलू के इशारे पर मोती ठुमक-ठुमककर ऐसा सुन्दर नाचता कि देखने वाला बस देखता ही रह जाता।
एक दिन की बात है। भगेलू मोती को लेकर पास के गावों में गया। वहां मोती ने तरह-तरह का तमाशा दिखाया। भगेलू ने उसे बहुत सारी बातें दिखाई थी, जैसे- ;पालती लगाकर, आँखे बंद करके ध्यान करना, हाथ जोड़कर नमस्कार करना, आरती उतरना , व्यायाम करना, नकल करना, नाचना आदि-आदि। एक गांव में खेल दिखाते हुए भगेलू को रात हो गई। वहां से जाना तो जल्दी चाहता था, पर गांव के बच्चो और बड़ो ने उसे ऐसा घेरा कि उठने ही न दिया। भगेलू को पैसे भी खूब मिल रहे थे, इसलिए भी उसने उठने की जल्दी नहीं दिखाई।
जब खेल खत्म हुआ तो रात के आठ बजे थे। घुपाघुप अँधेरा हो रहा था। गांव का रास्ता भी उबड़-खाबड़ था। जाड़े के दिन थे। ठंडी हवा बह रही थी। सर्दी के कारण दांत बज रहे थे। भगेलू सोच रहा था कि अब घर कैसे जाएं ? हलकी-हलकी बूंदाबादी शुरू हो गई थी, वह अलग। तभी गांव के मुखिया ने भगेलू से कहा कि आज की रात वह उसी के यहाँ रह जाए। भगेलू ने खुशी-खुशी उसकी बात मान ली।
मुखिया ने भगेलू और मोती को खूब अच्छा खाना खिलाया। मोती को उन्होंने अपनी भैंसो के पास ही बाँध दिया। भगेलू अलाव के पास बैठा मुखिया से देर तक गप-शप करता रहा। फिर गरम-गरम रजाई में घुसते ही जल्दी ही सबको नींद आ गई।
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नई जगह होने के कारण मोती को नींद नहीं आ रही थो। बहुत देर तक वह भैंसों से बात करता रहा। जब वे भी सो गई तो वह बैठा-बैठा न जाने क्या-क्या सोचता रहा? बचपन से लेकर अब तक की सारी घटनाएं उसकी आँखों के आगे घूम रही थी। वह अपने मालिक के बारे में सोच रहा था कि वे कितने अच्छे है ? उसका हर समय ध्यान रखते है और उसे कितना प्यार करते है ?
सहसा तभी मोती ने खट-खट की आवाज सुनी। वह चौंक गया , उसने सिर उठाकर देखा। उस घने अँधेरे में भी मोती ने देख लिया कि सामने दो आदमी खड़े थे। वह सोच रहा था कि कौन है, कहाँ से आए है ? क्यों आए है ? तभी एक आदमी ने मोती के पास बंधी हुई भैंस को खोलना शुरू कर दिया। पल भर में ही मोती सारी बात समझ गया। “ओह ! ये तो चोर है। भैंस चुराने आए है। ” अपने आप से उसने कहा।
वह सोचने लगा कि मैंने मुखिया का अन्न खाया है। मुझे उनके प्रति वफादार होना ही चाहिए। यह बात भी उसके मन में कौंध गई कि उसका मालिक भी अंदर सोया है। हो सकता है कि सुबह होने पर वे समझे कि उसी ने चोरी कराइ है और उसे मारें-पीटे, बुरा-भला कहें। “मुझे प्राण देकर भी मालिक पर आई विपत्ति को दूर करना होगा। ” मोती ने मन ही मन कहा।
तभी मोती ने पाया कि एक आदमी मोती के पास खड़ा होकर उसकी रस्सी खोल रहा है। वह गलती से अँधेरे में मोती को भैंस समझ बैठा था। पल भर में ही एक विचार मोती के मन में आया। वह चुपचाप खड़ा रहा , पर जैसे ही रस्सी खोलकर आदमी उसे लेकर आगे बढ़ा कि मोती ने अपने दोनों पैरों पर खड़े होकर बड़े ही साहस के साथ दोनों हाथो से उसे कसकर पकड़ लिया।
चोर बुरी तरह हड़बड़ा गया। वह जोरों से चीखने लगा। रस्सी उसके हाथ से छूट गई। अँधेरे के कारण दूसरा चोर भी समझ न पाया कि मामला क्या है ? उसने समझा कि उसका साथी रंगे हाथो पकड़ा गया है। अतएव वह भी भैंस छोड़-छाड़कर सिर पर पांव रखकर वहां से भागा।
चोर की चीख सुनकर मुखिया और भगेलू भी जाग गए थे। दोनों लाठी लेकर बाहर दौड़े। टार्च से रौशनी डालने पर उन्होंने देखा कि मोती एक आदमी को कसकर पकड़े खड़ा था, दांतो से उसे काट रहा है। एक भैंस खूंटे से खुली खड़ी है और वह भी रम्भा रही है। तुरंत ही उसकी समझ में सारी बात आ गई। मुखिया ने आगे बढ़कर मोती का सिर थपथपाया। “शाबाश मोती ” और चोर को उसके पंजे से छुड़ाया। भगेलू ने रस्सी से कसकर चोर को बांध दिया। “सुबह उसे थाने भेजेंगे ” मुखिया ने कहा।
मुखिया और भगेलू दोनों ने मोती को खूब प्यार किया और उसकी बहुत तारीफ की। “आज मोती के कारण हम इतनी बड़ी हानि से बचे है। ” मुखिया कह रहा था।
सुबह होते ही सारे गांव में मोती की बहादुरी की बात फ़ैल गई। उसे देखने पूरा का पूरा गांव ही इकट्ठा हो गया था। गांव वाले उसके लिए बहुत सारे उपहार भी लाए थे। मुखिया ने भी प्रसन्न होकर भगेलू को बहुत सारा इनाम दिया था। यही नहीं, दूसरे दिन अख़बार में मोती की बहादुरी की खबर छपी भी थी।
तो दोस्तों कैसी लगी यह Bhalu ki Kahani आप सभी को ? इस कहानी से हमे शिक्षा मिलती है कि हमे हमेशा वफादर और साथ ही कठिनाइयों में बहादुरी से निर्णय व कार्य करना चाहिए। दोस्तों हमे उम्मीद है कि आपको यह Bhalu ki Kahani जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही Bhalu ki Kahani जैसी Hindi Kahaniyan पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहिए।
गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।
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