आज हम आप लोगो के लिए लालची Thakur Ki Kahani लाये है जिसे पढ़कर आनंद जरूर मिलेगा।
अशुभ मोहर | Ashubh Mohar
Thakur Ki Kahani Hindi
एक गाँव में कोली व कोलन रहते थे। मेहनत मजदूरी करके पेट भरते थे। जब समय मिलता, तो तानाबाना लगाकर गद्दर बुन लेते। जो कुछ कमाते उसमे से कुछ बचा लेते। इस प्रकार उन्होंने कुछ धन जमा कर लिया।
एक दिन कोलन बोली, “मेरे पीहर में भाई के लड़के का ब्याह है। मुझे जाना पड़ेगा। मेरी और बहनें गहने पहनकर आएँगी। मुझे भी कुछ गहने बनवा दो। ” कोली बोला, “चलो, सोने की मोहर खरीद लाते है। जब ब्याह होगा तब गहने बनवा लेंगे। “
Thakur Ki Kahani :-
दोनों बाजार गए, जो कुछ जमा किया था, सबको ठिकाने लगा आए और घर में एक मोहर आ गई।
मोहर आ तो गई, पर दोनों की नींद हराम हो गई। कोई इसे ले नहीं जाए, इस चिंता में दोनों रात भर जागते रहे। दोनों ने एक दिन तय किया कि एक साथ क्यों जगें ? एक जगे, दूसरा सो जाय। बारी-बारी से वे सोते जागते रहे। कुछ राते ऐसे ही निकली। लेकिन इससे वे उकता गए।
एक दिन दोनों ने सलाह की – पड़ोस में ठाकुर साहब रहते है। उनके यहाँ तो बहुत मोहरे है। कई चौकीदार है। उनके यहां चोरी-चकारी का डर तो है नहीं। वहां मोहर रख आते है। यह बात पक्की हो गई।
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कोली मोहर को लेकर ठाकुर साहब के पास पहुंचा। प्रार्थना की — ठाकुर साहब, आप हमारी एक मोहर रख लो। ठाकुर साहब ने पूछा — क्यों, यहां किसलिए रखने आया है ?
कोली ने सच-सच बता दिया। ठाकुर साहब ने कहा — देख, उस कोठे में हमारी पांच मोहरे रखी है। वही तू भी रख जा।
कोली ने जाकर देखा, वास्तव में वहां पांच मोहरे रखी थी। उसने अपनी मोहर वही रख दी और ठाकुर साहब को बताकर चला गया। समय बीतता गया। कुछ दिन पश्चात कोली की ससुराल से पत्र आया। साले के लड़के का ब्याह है। कोलन ने कहा– अपनी मोहर को ठाकुर साहब के यहाँ से ले आओ। उसे एक डोरे में पो लेंगे और अपना काम बन जायेगा।
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कोली भागा-भागा ठाकुर साहब के यहाँ पहुंचा। ठाकुर साहब सो रहे थे। बेचारा बैठा रहा जब वह जगे, तब कोली ने अपनी बात कही — ससुराल में ब्याह है, मोहर लेने आया हूँ।
ठाकुर साहब बोले — जरूर ले जाओ, पर हम से क्या कहता है ! जहाँ रख गया था, वहां से उठा ले जा। जा कोठा खोल ले !
कोली ने कोठा खोला। वहां एक भी मोहर दिखाई नहीं दी। कोली धीरे से बोला — ठाकुर साहब, यहाँ तो एक भी मोहर नहीं है।
ठाकुर साहब बोले — ऐसा कैसे हो सकता है ? यहाँ तो हमारी पांच मोहरे रखी थी।
ठाकुर साहब उठे। उन्होने खुद देखा एक भी मोहर नहीं है। वे बोले — क्या रे, तेरी मोहर अशुभ तो नहीं थी ! ऐसा लगता है कि तेरी मोहर अशुभ थी, जो हमारी पांचो मोहरे भी गायब गई।
कोली बोला — मुझे तो पता नहीं। कोलन से पूछकर आता हूँ।
वह उदास मन से कोलन के पास आया। उससे पूछा — अरी भाग्यवान, यह बता हमारी मोहर अशुभ तो नहीं थी।
क्यों, क्या हो गया ? कोलन ने पूछा।
अरे, पांच मोहरे भी नहीं मिल रही है। ठाकुर साहब कह रहे है कि हमारी मोहर अशुभ थी जो उनकी पांचो मोहरो को गायब कर ले गई।
यह बात सुनकर कोलन रोने लगी। कोली भी रोने लगा। दोनों रोते रहे। उनको इस बात का दुःख नहीं था कि उनकी मोहर चली गई। उन्हें तो ठाकुर साहब की पांच मोहरो के गायब हो जाने का डर था।
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अंत में कोलन बोली — कोली राज ठाकुर साहब के पास जाओ और कह देना कि हमे पता नहीं कि हमारी मोहर अशुभ थी। यदि यह पता होता तो हम आपके यहाँ रखने नहीं आते। किसी तरह अपना पिण्ड छुड़ाओ।
कोली घबराता-घबराता ठाकुर साहब के पास पहुंचा। हाथ जोड़कर बोला — ठाकुर साहब, माफ़ कर दो। हमे पता नहीं था कि हमारी मोहर अशुभ थी।
ठाकुर साहब गुर्राये। बोले — हमारा तो नुकसान कर दिया।
कोली ने हाथ जोड़े। पांव। पकड़े। नाक रगड़ी। तब कही जाकर पिण्ड छूटा। गाँठ की ठगा कर बुध्दू बना कोली वापस घर आया। कान पकड़े। सौगंध खाई। भूले बनिया भेड़ खाई, अब खाऊं तो राम दुहाई ।
kya story he bhai maja aa gya bilkul…pura mood fresh ho gyaa……kamaal ki story likhte ho aap
Thank you
Like!! Great article post.Really thank you! Really Cool.