आज हम आपको Short Moral Stories in Hindi जो कि बच्चो के लिए बहुत शिक्षाप्रद है। ये Moral Stories for Kids in Hindi से आपके जीवन में कुछ सीख जरूर मिल सकती है। तो आप सभी इन Moral Short Stories in Hindi को पढ़े और इसका आनंद ले और अपने मित्रों को भी शेयर करे।
1. सफेद हंस
(short moral stories in hindi)
एक किसान था –रामदास। वह बहुत तो था , किन्तु बहुत आलसी था। वह न तो अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान। अपनी गाय-भैंसो की भी कभी खोज खबर नहीं लेता था। वह अपने घर के सामान की भी देखभाल नहीं करता था। उसने सब काम नौकरो पर छोड़ रखा था। उसके आलस्य के कारण सारे घर की व्यवस्था अस्त-व्यस्त था।
एक दिन रामदास का मित्र गोपाल उससे मिलने उसके घर आया। उसने जब घर का कुप्रबंध देखा तो समझ गया कि समझाने से आलसी रामदास समझने वाला नहीं है। अतः उसने रामदास की भलाई करने के उद्देश्य से उससे कहा, –“मित्र ! तुम्हारी विपत्ति देखकर ,मुझे बड़ा दुःख हो रहा है। तुम्हारी परेशानी दूर करने का एक उपाय मैं जानता हूँ। “
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रामदास बोला,–“वह उपाय क्या है मुझे बताओ मैं उसे जरूर करूँगा। “
गोपाल बोला, — “सब पक्षियों के जागने से पहले एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है और दोपहर दिन चढ़े लौट जाता है। यह तो पता नहीं कि वह कब कहाँ आएगा, किन्तु जो उसका दर्शन कर लेता है उसे फिर किसी चीज की कमी नहीं रहती। “
रामदास बोला, — “मैं उस हंस को जरूर ढूंढ कर उसके दर्शन करूँगा। “
गोपाल चला गया। रामदास बड़े सवेरे उठा और हंस की खोज में निकल पड़ा। सबसे पहले वह खलिहान में गया। वहां उसने देखा एक आदमी उसके ढेर से एक पोटली में गेंहू बांध कर ले जा रहा था। रामदास को देखकर उसने गेंहू वापस ढेर में डाल दिया और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी।
उसके बाद वह गोशाला गया। वहां का ग्वाला गाय का दूध दुहकर अपनी स्त्री के लोटे में दाल रहा था। रामदास ने उसे डांटा। घर पर जलपान करके वह फिर हंस की खोज में निकल पड़ा और खेत पर गया। उसने देखा कि खेत पर अब तक मजदूर आये ही नहीं थे। वह वहां रुक गया। जब मजदूर आये तो उन्हें देर से आने के लिए लताड़ा और आगे से समय पर आने की हिदायत दी। इस प्रकार वह जहाँ भी गया वही उसकी कोई न कोई हानि रुक गई।
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सफेद हंस की खोज में रामदास प्रतिदिन सवेरे उठने और घूमने लगा। अब उसके नौकर समय पर आकर ठीक काम करने लगे। उसके यहाँ चोरी होनी बंद हो गई। पहले वह रोगी रहता था, अब उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो गया। जिस खेत से उसे दस मन अन्न मिलता था अब पच्चीस मन मिलने लगा। गोशाला से दूध भी अधिक आने लगा। इसी प्रकार काफी दिन बीत गए। एक दिन गोपाल रामदास के घर आया। रामदास ने उससे कहा,–“मित्र सफेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा, किन्तु उसकी खोज में जाने से मुझे बहुत फायदा हुआ है। “
गोपाल हँस पड़ा और बोला,–“परिश्रम ही सफेद हंस है। परिश्रम के पंख सदा उजले होते है। जो परिश्रम नहीं करता वह हानि उठाता है और जो परिश्रम करता है वह संपत्ति और सम्मान पाता है। ”
Moral – आलसी न रहे इससे आपकी ही कही न कही हानि अवश्य होती है।
2. धन की तलाश
(Moral Stories for Kids in Hindi)
किसी नगर में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम हरिनारायण था। एक बार वह कुछ रूपए लेकर माल खरीदने दूसरे नगर जा रहा था। रस्ते में उसे एक ठग मिला। ठग बहुत चालाक था। सेठ भी अक्लमंद था और सोच समझ कर ही कार्य करता था।
दोनों साथ-साथ बाते करते-करते एक सराय में पहुंचे। दोनों ने वही पर रात बिताने का निश्चय किया। अतः सराय में ही खाना खाकर वे दोनों पास-पास बिस्तर पर लेट गए। सेठ तप निश्चिन्त होकर सो गया, किन्तु ठग को नींद नहीं आ रही थी क्योकि वह तो सेठ के रूपए चुराने के बारे में सोच रहा था। उसने जब देखा कि सेठ गहरी नींद में सो गया है उसने सेठ का सारा सामान टटोलना शुरू किया , किन्तु सब कुछ अच्छी तरह देखने के बाद भी उसको कुछ नहीं मिला। वह चिंता में पड़ गया कि सेठ यहाँ से कही गया भी नहीं फिर उसका धन गया कहाँ ? इसी चक्कर में वह निराश हो गया।
सुबह हुई वे दोनों आगे बढे। अभी एक रात और रस्ते में ही कटनी थी। ठग मन में विचार कर रहा था कि कोई बात नहीं आज रात अवश्य धन चुरा लूंगा। रस्ते में उसने बातों-बातों में पूछा ,–“सेठ जी आप कितने का माल खरीदेंगे ?”
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सेठ ने जवाब दिया , “यही कोई चार-पांच हजार का माल खरीदना है। रोज-रोज कौन इतनी दूर खरीदने आएगा। “अब ठग को विश्वास हो गया कि सेठ के पास अवश्य रूपये है। किन्तु कहाँ है, इसका पता लगाना अभी बाकी था। एक नगर की धर्मशाला में दोनों फिर ठहरे। रात का खाना खाकर पास-पास बिस्तर लगा कर सो गए। किन्तु ठग पिछली रात की तरह सोने का नाटक करता रहा। जब ठग को विश्वास हो गया कि अब सेठ को गहरी नींद आ गई है तो वह अपने स्थान से उठा और सेठ का सामान टटोलने लगा। उसने सेठ की सारी चींजे देख डाली , लेकिन रुपयों की थैली उसे कही नहीं मिली।
सुबह होते ही दोनों फिर आगे चले। जुदा होने का स्थान पर आ जाने पर सेठ बोला , “भाई राम-राम, आपका नगर आ गया अब मैं विदा लेता हूँ। आपका साथ रहने से रास्ता अच्छा कट गया, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। ” इतना कहकर सेठ ने रुपयों की थैली अपनी जेब से निकाली, देखी और पुनः अपनी जेब में रख ली। “
ठग तो ठगा सा रह गया। उसने सेठ से क्षमा मांगते हुए कहा, “सेठ जी ! मैं ठग हूँ ,चोर हूँ किंतु आपकी चतुराई के आगे नतमस्तक हूँ। आप मेरे गुरु हैं। अब यह भेद भी बता दीजिये कि आपने रूपए रखे कहाँ थे ?”
सेठ हरिनारायण बोला, “भाई इसमें भेद कुछ नहीं है। मालूम था कि तुम मेरा बिस्तर-सामान, मेरी जेबे सब टटोलोगे। किन्तु तुम अपना बिस्तर भला क्यों टटोलोते इसलिए मैंने अपना धन तुम्हारे बिस्तर के नीचे रख दिया और मैं निश्चिन्त हो गया। “
“अरे ! धन मेरे ही पास था और मैं आपकी जेबें और सामान टटोलता रहा। मैं भी कितना मुर्ख हूँ। ” और कहते हुए ठग ने अपना माथा थोक लिया और चला गया।
Moral – चोरी करना बुरी बात है तथा हमेशा दिमाग का प्रयोग करे।
3. श्रम ही सोना
(short moral stories in hindi)
यह कथा किसी महापुरुष की नहीं, अपितु एक अति साधारण बालक “राजू” की है, जो सामान्य बच्चो की तरह ही है। वह अनाथ था उसे कुछ याद भी नहीं था यह भी नहीं कि उसका नाम “राजू” किसने रखा। उसके माता-पिता कौन है, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी। उसमे जब होश संभाला तो अपने आपको एक होटल के सबसे गंदे कोने में लोगो की जूठन धोते पाया। उस होटल में आम और माध्यम वर्ग के लोग ही पेट पूजा करने के लिए आते थे और उसे “राजू-राजू” कहकर पुकारते थे और वह नाम सुनते ही मशीन की भांति नाम पुकारे जाने की दिशा में दौड़ पड़ता था।
उसे पढ़ने का बेहद शौक था। सौभाग्यवश उस होटल का मालिक बहुत ही दयावान पुरुष था। उसे न जाने कैसे राजू के उस शौक़ का पता चल गया। उसने उसे स्कूल में दाखिल करवा दिया। अब राजू बहुत खुश था। दूसरे बच्चो के साथ बैठकर वह मन लगा कर पढ़ाई करने लगा। बुद्धि उसकी तीव्र थी और देखते ही देखते वह सभी बच्चो में आगे निकल गया। वह हमेशा कक्षा में प्रथम आता।
स्कूल से निकलकर वह कालेज में दाखिले के लिए पहुंचा। कालेज में आकर उसने सम्पन्न परिवारों के लड़के-लड़कियों को सुन्दर-सुन्दर पोशाकों में सजे-धजे इधर-उधर घूमते देखा। उन्हें देख कर पर एकबारगी तो उसे अपने पैबंद लगे कुर्ता-पाजामे पर शर्म महसूस हुई किन्तु फिर उसने अपने आप को संभाला और अपने दाखिले का फार्म सम्बंधित कर्मचारी को दे दिया। कर्मचारी और आस-पास खड़े छात्रों की भीड़ ने उसे ऐसे देखा जैसे वह इंसान न होकर चिड़ियाघर से छूटा जानवर हो।
उसे अच्छे अंको के आधार पर कालेज में दाखिला मिल गया। राजू कालेज जाने लगा। वह किसी से कुछ बोलता-चालता नहीं था और न कोई उससे बोलता था। वह केवल अपनी किताबो में लीन रहता। कालेज में पढ़ने वाले बड़े घरों के बेटे उससे बात करना अपनी तौहीन समझते थे। राजू कक्षा में सदा प्रथम आता था और उसे वजीफा मिलता था इसलिए भी अन्य छात्र उससे ईर्ष्या करते थे। उसकी खिल्ली उड़ाते रहते थे। मौका मिलते ही छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान कर देते थे परन्तु राजू ने न उसकी बातो की परवाह की और न ही उसने बहस की।
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इन सबके बावजूद दूसरे छात्र यह जानने को सदा उत्सुक रहते कि राजू आखिर करता क्या है और रहता कहा है ? प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से उन्होंने स्वयं राजू से यह बात जाननी चाही, पर राजू हमेशा हंसकर उनकी बात टाल देता। किसी ने कहा कि वह ट्यूशन करके अपना गुजारा करता है , किन्तु यह बात भी झूठी निकली।
एक बार शहर में लगातार रोज रात को चोरियाँ होने लगी। पुलिस चोरो की तलाश में लग गई। उन्हें कालेज के छात्रों पर भी संदेह हुआ। इसी काम में पुलिस तहकीकात के लिए एक दिन कालेज में आयी और छात्रों से पूछताछ की। सभी छात्रों ने राजू के विषय में इंस्पैक्टर को बताया कि वही एक छात्र है जिसका चरित्र रहस्यमय है।
इंस्पैक्टर ने सभी छात्रों के सामने राजू को बुलावा भेजा और उससे पूछा,–“तुम कहाँ रहते हो ?”
राजू ने बोला,–“सर रहने का कोई पता नहीं है जिसे मैं आपको बता सकूँ। “
इंस्पैक्टर चौंका उसने पूछा,–“फिर तुम रात कहाँ बिताते हो ?”
राजू ने जवाब दिया, –“जी, रात सात बजे से ग्यारह बजे तक मैं एक दवाई के कारखाने में दवाइयों की पैकिंग का काम करता हूँ। इसके लिए मुझे 100 रु मासिक वेतन मिलता है। ग्यारह बजे स्टेशन के होटल में खाना खाने जाता हूँ। इसके बाद रात बारह बजे से पांच बजे तक मैं दैनिक अख़बार के प्रेस में जाकर अखबार मोड़ने का काम करता हूँ। इसके लिए मुझे 200 रु महीने मिलते है। सुबह सात बजे मैं एक बंगले पर तीन घंटे के लिए माली की नौकरी करता हूँ। इसके लिए वे मुझे 100 रु मासिक देते है।
इंस्पैक्टर और दूसरे लोगो को उसकी बात अविश्वसनीय लगी। इंस्पैक्टर ने कड़ककर पूछा,–“तुम सच बोल रहे हो ?”
राजू ने कहा, –“सर आपको क्या लगता है मैं झूट क्यों बोलूंगा मैं सच बोल रहा हूँ । आप किसी से भी पूछ सकते है। “
इंस्पैक्टर ने दूसरा प्रश्न किया,–“यदि तुम सच कह रहे हो तो फिर 400 रु कमाकर भी फटेहाल क्यों रहते हो ?”
राजू कुछ पल सोचता रहा। सोचते-सोचते गंभीर हो गया और उसकी आँखों में आंसू उमड़ आए। भले गले से वह बोला ,–“इंस्पैक्टर साहब ! इस दुनिया में मुझे कौन लाया मैं नहीं जनता। लेकिन जिस इंसान ने मेरी जिंदगी को संवारा आज वह अस्पताल में एक भयंकर बीमारी से जूझ रहा है। उसी के इलाज और देखभाल पर मैं यह पैसे खर्च करता हूँ। “
वह इंसान और कोई नहीं वही होटल का मालिक था जिसने राजू की अँधेरी जिंदगी को रौशनी दी और जिसे राजू अपना मसीहा मानता था।
राजू की बात सुनकर इंस्पैक्टर का ह्रदय भी द्रवित हो उठा। उसने कहा, –“राजू ! मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ अगर तुम चाहो तो। “
“नहीं इंस्पैक्टर साहब ! मुझे किसी की जरुरत नहीं है। मेरा सबसे बड़ा सहारा मेरे ये दो हाथ है। इन हाथो से की गई मेहनत पर ही मुझे विश्वास है और इतना कहकर वह अपनी कक्षा से चला गया।
सब से सब उसे जाते देखते रह गए।
Moral – किसी के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए तथा परिश्रम करना चाहिए।
4. तोते की कहानी
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एक बादशाह था। उसके पास एक तोता था। बादशाह अपने तोते को बहुत प्यार करता था। वह उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता था।
तोता भी अपनी मीठी-मीठी बातो से बादशाह का मन बहलाता। एक दिन तोते ने सोचा ‘बहुत दिन हो गए इस पिंजरे में कैद हुए। मुझे अपने माँ-बाप, भाई-बहनो से भी ,मिलना चाहिए। ‘ अतः एक दिन तोते ने राजा से विनती की –“मेरे माँ-बाप, भाई-बहन मेरे देश में है। मई बहुत दिनों से पिंजरे में कैद हूँ। आप कृपा करके मुझे बीस दिन की छुट्टी दे दीजिये, मैं अपने देश हो आऊंगा। बारह दिन मुझे आने-जाने में लगेंगे, आठ दिन मैं अपने घर में रह लूंगा और अपने रिश्तेदारों से मिल लूंगा।
“नहीं” बादशाह ने जवाब दिया। “अगर मैं तुझे छोड़ दूँ तो तू वापस नहीं आएगा और तेरे बिना मेरा मन नहीं लगेगा। “
तोता विश्वास दिलाते हुए बोला–“हुजूर” मैं वादा करता हूँ और मैं अपना वादा निभाऊंगा। “
बादशाह बोला, — “अच्छा ऐसी बात है कि तू वायदा पूरा करने का वचन दे रहा है तो मैं तुझे पंद्रह दिन की छुट्टी देता हूँ।
“खुदा हाफिज, मैं किसी न किसी तरह दो हफ्ते में लौट आऊंगा। ” तोता खुश होकर बोला।
सब लोगो से विदा लेकर वह उड़ गया। बादशाह को भरोसा नहीं था कि वह वापस आएगा ! किन्तु फिर भी वह तोते का इंतजार करने लगा।
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उधर तोता छः दिन में अपने वतन पहुंच गया और उसने अपने माँ-बाप, भाई-बहनो को भी ढूंढ लिया। वह अपनों के बिच आकर बेहद खुश था। इसी ख़ुशी में उसे पता ही नहीं चला कि आठ दिन कब बीत गए। वापस पिंजरे में जाकर कैद होने का वक्त आ गया। सुख के क्षण बीत गए , दुःख की घडी आ गई। कौन जाने वह फिर कभी वापस आ पायेगा या नहीं। अपने परिजनों से बिछुड़ते समय उसे बहुत दुःख हो रहा था। उसकी माँ ने उससे कहा, “अब तू वापस बादशाह के पास न जा। “किन्तु तोता बोला , “नहीं मैंने वायदा कियाहै। मैं अपना बचन नहीं तोडूंगा। “
माँ बोली,– “कभी देखा है कि बादशाह भी अपना वचन निभाते है। “अगर बादशाह इतना ही न्यायप्रिय होता तो क्या वह तुझे चौदह साल कैद में रखता ?”
तोता ने कहा, “माँ ! बादशाह कहते है कि मेरे बिना उनका दिल नहीं लगेगा। वह बेचैन होगा, इसलिए मैं जरूर जाऊंगा। “
“तू अपनी आजादी इसलिए ठुकरा रहा है क्योकि तेरे कारण एक बादशाह का दिल लगता है ? लगता है तेरा बादशाह दयावान काम और निर्मम ज्यादा है। ” उसकी माँ ने कहा।
इतना सब के बोलने पर भी तोते ने किसी की बात को जरूरी नहीं समझा और तैयारी करने लगा।
इतने में उसकी माँ बोली, “ऐसी स्थिति में मैं तुझे एक सुझाव दे रही हूँ। हमारे यहाँ एक फल होता है जिसे कायाकल्प फल कहते है इसे खाने के बाद लोग जवान हो जाते है चाहे वह कितना भी बूढ़ा क्यों न हो। तू यह बहुमूल्य फल बादशाह को जाकर देना और उससे अपनी आजादी की प्रार्थना करना। “
तोते ने कायाकल्प का फल लेकर अपने माता-पिता से विदा ली और आसमान में उड़ गया।
तोता छः दिन में वापस पहुँच गया और उसने बादशाह को फल भेंट करके उसके गुणों का बखान किया। बादशाह बहुत खुश हुआ। उसने तोते को आजाद करने का वायदा किया। एक फल उसने अपनी पत्नी को दिया और बाकी दो प्याले में रख दिए।
बादशाह का एक वजीर था। वह तोते से ईर्ष्या करता था। वह गुस्से से काँपने लगा। उसने बादशाह से कहा, “इस फल को खाने से पहले आजमा लेना चाहिए महाराज ! अगर ये अच्छे हुए तो इन्हे कभी भी खाया जा सकता है। “
बादशाह ने उसका सुझाव मान लिया और वजीर ने मौका पाकर कायाकल्प के फलो में जहर भर दिया।
इसके बाद एक दिन वजीर बोला, “महाराज इन फलों को आजमा लिया जाए। “
वजीर के कहने पर बादशाह ने दो मोर मंगवाये और उन्हें ये फल खाने के लिए दिए। दोनों मोर वही मर गए।
वजीर ने बादशाह से तुरंत कहा, “अगर आप ये फल खा लेते तो आपका क्या हाल होता ?”
“मैं भी मर गया होता। “बादशाह ने कहा। उसने उसी क्षण तोते को पिंजरे से बाहर निकलवाया और मरवा दिया।
लेकिन कुछ दिन बाद एक विचित्र घटना घटी। बादशाह ने एक व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई और उसे कायाकल्प का बचा हुआ फल खाने का हुक्म दिया। वह व्यक्ति बूढ़ा था। जैसे ही उसने कायाकल्प का फल खाया उसके बाल काले हो गए, मुँह में दांत निकल आये, आँखों में जवानी चमक आ गयी और वह बीस साल का नौजवान बन गया।
यह देखकर बादशाह बहुत पछताया और उसने सोचा कि उसने तोता को मरवा कर अच्छा नहीं किया। पर ‘अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। ‘
Moral – हमे कुछ करने से पहले अपने बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।
5. बुद्ध और डाकू
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एक जंगल में एक खतरनाक डाकू रहता था। जो भी जंगल में जाता वह डाकू उसे लूट कर मार डालता था और उसकी एक उंगली काट कर अपने गले में पहन लेता था। भय के कारण लोगो ने उस जंगल में जाना ही छोड़ दिया था कोई भी वह नहीं जाता था।
उस डाकू का लक्ष्य माला में 100 उंगलियों करने का था। निन्यानवे उंगलियां हो चुकी थी। अभी एक उंगली की जरूरत थी। एक दिन डाकू अपने माला को पूरा करने के लिए किसी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था कि इतने में उसे एक भिक्षु आता दिखाई दिया।भिक्षु को देखते ही उसने आवाज लगाई, – “ओ साधु ! रुक जा। “
भिक्षु बोला, “मैं तो रुक गया हूँ परन्तु तुम कब रुकोगे ?”
डाकू भिक्षु के पीछे दौड़ा। परन्तु आश्चर्य कि वह उसे पकड़ नहीं सका और चिल्लाया , “रुकता क्यों नहीं। ”
वह भिक्षु भगवान बुद्ध थे, उन्होंने कहा, “नहीं भाई, तुम ही भाग रहे हो। “
डाकू ने कहा , ” क्या कहा तुमने?”
भगवान बुद्ध ने धीरे से कहा, “पुत्र, तुम्हारे मन को शांति चाहिए। “
डाकू ने विचार किया ‘इसने मुझे पुत्र कहकर पुकारा क्या वास्तव में इसने ठीक कह कर पुकारा है ?’ किंतु फिर गरज कर बोला, -“क्या तुझे पता नहीं मैं कौन हूँ। मुझे तेरा उपदेश नहीं, बल्कि तेरा उंगली चाहिए। “
“अच्छा तो यह लो ! काट लो मेरी उंगली। “
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कह कर भगवान बुद्ध ने अपने दोनों हाथ डाकू की ओर बढ़ा दिए।
डाकू ने बुद्ध से कहा, “मैं तुझे मार डालूंगा। तेरे प्राण ले लूंगा। ”
बुद्ध ने उसे शांत भाव से कहा, “मुझे मार कर यदि तेरे मन को शांति मिल सके तो मुझे मार दे। “
डाकू ने आज तक ऐसा निर्भीक और शांत व्यक्ति नहीं देखा था। बुद्ध के मुखमण्डल के तेज से वह इतना प्रभावित हुआ की उनके चरणों में गिर पढ़ा और आँखों में आंसू भर कर बोलै, “मैं आज से किसी की हत्या नहीं करूंगा। “
बुद्ध ने उसे उठाया और अपने साथ बौद्ध विहार में ले गए।
अगले दिन सवेरे एक राजा बौद्ध विहार आया और उसने भगवान बुद्ध को प्रणाम किया। बुद्ध ने उसे देखकर प्रश्न किया, “क्या किसी मोर्चे पर जा रहे हो ?”
“हां भगवान ! एक डाकू ने पिछले कई महीनो से राज्य में आतंक फैला रखा है। आज मैं उसका वध करने जा रहा हूँ। आपका आशीर्वाद प्राप्त करने आया हूँ। “
भगवान बुद्ध मुस्कुरा कर बोले, “यदि वह डाकू का जीवन त्याग कर साधु हो जाये तो उसका क्या करोगे ?”
राजा आश्चर्य से बोला, “उसे प्रणाम करूंगा। परन्तु डाकू साधु हो जाए ऐसा संभव नहीं है। “
बुद्ध बोले –“पेड़ पर पानी कौन दे रहा है जरा देखो वह डाकू ही है। “
राजा ने दृष्टि उठाकर देखा।
“आश्चर्य ! महान आश्चर्य ! ! मैं तो अपनी सारी सामर्थ्य से भी उसे न बदल सका, परन्तु आपने एक ही पल में उसे बदल दिया। भगवान ! आप तो महान है कहकर उनके पैरो में अपना मस्तक रख दिया।
Moral – हमे सदा ही अच्छे और नेक काम करना चाहिए तथा मन को निर्मल रखना चाहिए।
6. भला आदमी
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एक गाँव था, जिसका नाम था –सोनपुर। इस गाँव में धनी-निर्धन सभी लोग मिल-जुल कर रहते थे। गाँव में एक धनी पुरुष रहता था, उसका नाम था दीनदयाल। वह बड़ा परोपकारी व्यक्ति था। उसने गाँव वालो के लिए एक मंदिर बनवाया। मंदिर में एक पुजारी भी रखा। मंदिर के खर्च के लिए बहुत सी भूमि, खेत और बगीचे मंदिर के नाम कर दिए।
उसने ऐसा प्रबंध किया कि जो भी भूखे, दीन दुखी या साधु-संत मंदिर में आवे, वे दो -चार दिन ठहर सके और उनको भोजन इत्यादि भी मंदिर में ही मिल जाया करे। अब दीनदयाल को एक ऐसे आदमी की आवश्यकता थी जो मंदिर की संपत्ति का प्रबंध ठीक प्रकार से कर सके और मंदिर के सभी कार्यो की समुचित व्यवस्था कर सके।
इस काम के लिए बहुत से लोग दीनदयाल के पास आये। वे सभी यह बात अच्छी तरह जानते थे कि यदि मंदिर की व्यवस्था का कार्य मिल जाये तो वेतन अच्छा मिलेगा। किन्तु दीनदयाल को कोई भी आदमी पसंद नहीं आया। लोगो ने उससे पूछा, –“एक से एक योग्य और शिक्षित व्यक्ति तुम्हारे पास आया, लेकिन तुमने सबको अस्वीकार कर दिया। आखिर किस तरह का आदमी चाहिए तुम्हे ?”
दीनदयाल ने कहा,–“मुझे एक भला आदमी चाहिए और मैं उसे अपने आप खोज लूंगा। ” इसी खोज-बीन में कई दिन गुजर गए। बहुत से लोग दीनदयाल की बात सुनकर उससे अप्रसन्न हो गए और बहुत से लोग उसे मुर्ख समझने लगे। किंतु वह किसी की भी बात पर ध्यान नहीं देता था। रोज सुबह जब मंदिर के द्वार खुलते और लोग भगवान के दर्शनों के लिए आने लगते तब दीनदयाल अपने मकान की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले लोगो को चुपचाप देखा करता था।
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एक दिन एक आदमी मंदिर में दर्शन करने आया उसके कपडे मैले व फटे हुए थे। वह बहुत अधिक पढ़ा-लिखा भी नहीं दिखता था। जब वह भगवान के दर्शन करके वापस जाने लगा तब दीनदयाल ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, –“क्या तुम इस मंदिर की व्यवस्था का काम स्वीकार करेंगे ?”
यह सुनकर वह व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया। उसने दीनदयाल से कहा — मैं इतने बड़े मंदिर की देख-रेख कैसे कर पाऊँगा ? मैं तो एक अनपढ़ व्यक्ति हूँ। “
दीनदयाल ने कहा,–“मुझे बहुत विद्वान व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। मैं तो एक भले आदमी को मंदिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूँ। “
उस व्यक्ति ने दीनदयाल से पूछा, –“आपने मुझमे ऐसा क्या देखा कि मुझे आप भला आदमी बोल रहे हो ?”
दीनदयाल ने कहा, –“मंदिर के रास्ते में एक ईंट उखड़ी हुई थी और उसका एक कोना ऊपर निकला हुआ था। मैं इधर बहुत दिनों से देख रहा था कि उस ईंट के टुकड़े जो बाहर निकली थी उसे लोग देखकर भी कुछ नहीं करते थे जबकि उन्हें चलते वक्त ठोकर लगती थी पर तुम्हे नहीं लगी, किन्तु फिर भी तुमने उसे देखकर ही निकाल देने का प्रयत्न किया। मैं देख रहा था कि तुम मेरे मजदुर से फावड़ा मांग कर ले गए और उस टुकड़े को खोदकर तुमने वहां की भूमि भी समतल कर दी। “
उस व्यक्ति ने कहा, — “रास्ते से पत्थर हटाना ये तो हर व्यक्ति का कर्तव्य है।जिससे दुसरो को ठोकर न लगे। रास्ते में पड़े पत्थर से कभी न कभी उसमे कोई ठोकर खायेगा इसलिए मैंने यह किया इसमें बड़ी बात क्या है। “
दीनदयाल ने कहा,–“अपने कर्तव्य को जानने और पालन करने वाले लोग ही भले आदमी होते है। “और दीनदयाल ने उस व्यक्ति को ही मंदिर का प्रबंधक बना दिया।
Moral – हमे अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए। दुसरो की भी मदद जरूर करे।
7. सियार और सियारिन की कहानी(short moral stories in hindi for kids)
8. एक एक मुट्ठी(short moral stories in hindi)
9. राजा की कहानी समाधि(moral stories in hindi)
10. जादुई चुटकी(short moral stories in hindi)
तो कैसी लगी यह Top 10 Short Moral Stories in Hindi for Kids शिक्षाप्रद कहानिया। उम्मीद करते है आप सभी को इसे पढ़कर अच्छा जरूर लगा होगा।
मुझे हिंदी कहानियाँ बहुत पसंद हैं जो हमें बहोत कुछ सिखाती है
बहुत ही अच्छी कहानिया साझा की है। इन कहानियों को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।