दोस्तों आज हम आपको Krishna Sudama ki Kahani बताने जा रहे है। इस Krishna Sudama ki Kahani में कृष्ण और सुदामा का मिलन का चित्रण मिलता है। तो आप सभी इस छोटी सी Krishna Sudama ki Kahani को पढ़िए और दुसरो को भी share करिए।
कृष्ण और सुदामा
(Krishna Sudama ki Kahani)
प्राचीन काल में सुदामा नाम का एक गरीब ब्राह्मण था । बचपन में वह श्रीकृष्ण महाराज के साथ एक ही गुरुकुल में पढ़ा था। दोनों में बड़ा प्रेम था। गुरुकुल की पढ़ाई समाप्त करने पर कृष्ण राजा बन गए और सुदामा गरीबी में दिन काटने लगा । गरीबी से तंग आकर एक दिन उसकी पत्नी ने कहा- “जाओ, कृष्णजी से कुछ माँग लाओ वह राजा हैं और तुम उन्हें अपना बचपन का मित्र बताया करते और उनकी बड़ी प्रशंसा किया करते हो ।’
यह सुनकर सुदामा ने कहा- “मैं गरीब जरूर हूँ, पर किसी के आगे हाथ नहीं फैला सकता, माँगना बुरा है। कृष्ण मेरे मित्र हैं पर यदि उन्होंने मना कर दिया, तो ?”
Krishna Sudama ki Kahani
“मैं समझूंगी तुम दोनों की मित्रता झूठी थी।”
पत्नी की इस बात को सुनकर सुदामा को बुरा लगा, उन्होंने कहा — “ऐसा मत कहो, श्रीकृष्ण बड़े आदमी है। पर यदि मैं उनके पास जाऊँ तो भेंट के लिए क्या ले जाऊँगा ? घर में अन्न का एक दाना भी तो नहीं है !”
उसकी पत्नी ने कहा– “इसकी चिन्ता मत करो।” यह कहकर वह एक पड़ोसी के घर से मुट्ठी भर चावल उधार ले आई और सुदामा के दुपट्टे के एक छोर में बाँधकर उन्हें द्वारिकापुरी के लिए रवाना कर दिया, जहाँ उन दिनों श्रीकृष्ण जी राज करते थे ।
द्वारिका पहुँचकर सुदामा श्रीकृष्ण जी के महल के सामने जाकर खड़े हो गए और द्वारपाल से पूछने लगे– “क्या श्रीकृष्ण जी का महल यही है ?” सुदामा को ऊपर से नीचे तक देखकर द्वारपाल मुस्कराया और कुछ कहे बिना श्रीकृष्ण जी को खबर करने महल के भीतर चला गया। उसने जाकर कहा– “महाराज, बाहर एक पतला- दुबला फटेहाल आदमी खड़ा है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न शरीर पर कुरता है, वह नंगे पैर है। आपके महल का पता पूछता है और अपना नाम सुदामा बताता है। “
सुदामा का नाम सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पैर बाहर दौड़ पड़े और जाकर सुदामा को कौली में भर लिया।
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दोनों मित्र एक-दूसरे को चुपचाप देखते रहे। उसके बाद श्रीकृष्ण बड़े आदर और प्रेम के साथ अपने रनिवास में ले गए और अपनी रानियों से उनका परिचय कराया। परिचय कराने के उपरान्त श्रीकृष्ण ने गरम पानी से सुदामा के पैर धोए। उनकी दुरावस्था को देखकर श्रीकृष्ण रोने लगे ।
खाना-पीना हो जाने पर श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा — “भाभी ने हमारे लिए क्या सौगात भेजी है ?” सौगात का नाम सुनकर सुदामा का चेहरा एकदम उतर गया । वह चावलों की पोटली को, जो कोख में छिपाई हुई थी, और छिपाने लग गए जिससे कृष्ण उसे देख न पाएँ । परन्तु कृष्णजी उस पोटली को देख चुके थे।
उन्होंने वह पोटली सुदामा से जबरदस्ती छीन ली और चावल निकालकर बड़े प्रेम से खाने लगे। खाते-खाते उन्होंने हँसते हुए कहा– “मित्र, तुम्हें याद होगा, एक दिन गुरुमाता ने हम दोनों को खाने के लिए चने दिए थे। वह तुमने चुपके-चुपके खा लिए और मुझे न दिए थे। तुम्हारी चोरी की आदत अब तक नहीं गई है। तुम इसी तरह भाभी के चावलों को छिपा रहे थे। “
द्वारिकापुरी में सुदामा कई दिन तक बड़े आराम से रहे परन्तु कृष्ण जी से कुछ मांगने की उनकी हिम्मत न हुई। जब वह कृष्ण जी से विदा लेकर घर जाने लगे तब भी कृष्ण जी ने उन्हें कुछ न दिया।
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सुदामा अपने मन में कहने लगे– “अच्छा हुआ जो मैंने उनसे कुछ न माँगा। इन्कार कर देते तो मेरा मरन हो जाता। मेरी बुरी हालत उनसे छिपी न थी, देते तो खुद ही देते। सच है, प्रभुता पाकर बड़े आदमी छोटों को भूल जाते हैं ।”
पन्द्रह-बीस दिन का रास्ता तय करने के बाद सुदामा अपने घर पहुँचे । क्या देखते हैं कि उनकी झोंपड़ी की जगह महल खड़ा है। वह घबरा गए। सोचने लगे कि झोंपड़ी का क्या हुआ और ब्राह्मणी कहाँ गई ? इतने में ही उनकी पत्नी बढ़िया कपड़े और गहने पहने द्वार पर आकर खड़ी हो गई और बोली — “क्या देख रहे हो ? आपके पीछे कृष्णजी के आदमी यह महल बनाकर, घर को सामान से भरकर चले गए।”
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यह सुनकर सुदामा ने अपनी आँखें बन्द कर लीं और चुपचाप अपने महल के भीतर चले गए।
तो दोस्तों कैसी लगी Krishna Sudama ki Kahani आप सभी को। हमें उम्मीद कि आपको यह कहानी जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही अनेक कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है और यह कहानी कैसी लगी हमें comment जरूर करें।
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