अन्यायी शासक | Sher ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आपको शानदार कहानी जो Sher ki Kahani है। इस कहानी का शीर्षक है “अन्यायी शासक”। यह अन्याय करके वाले एक शासक की कहानी है। तो दोस्तों यह कहानी को पढ़के आपको आनंद के साथ-साथ शिक्षा की भी प्राप्ति होगी। तो चलिए आप सभी इस Sher ki Kahani को पढ़िए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को भी share करिए।

अन्यायी शासक

(Sher ki Kahani )

अभ्यारण में प्रभास नाम का एक सिंह रहता था। वन के सभी जानवरों ने उसे अपने राजा मान लिया था। वे सभी झुककर आदर करते थे। उसकी बात मानते थे, उसके अनुशासन में रहते थे। जब प्रभास नया-नया राजा बना था, तो कुछ दिनों तक तो ठीक चलता रहा , पर फिर धीरे-धीरे उसे घमंड होने लगा।

वह वन के जानवरों से बड़ा कठोर व्यवहार करने लगा। हर किसी को बिना बात के फटकार देता। चाहे जब कभी किसी को अपमानित कर देता। सभी पशु-पक्षियों को वह तानाशाह शासक की भांति दबाकर रखता। उसके राज में किसी को भी सिर उठाकर रहने की, सच कहने की हिम्मत न थी।

बात यही तक रहती, तब भी ठीक थी। प्रभास में एक और सबसे बड़ा दुर्गुण था, वह यह था कि कानों का कच्चा था। कुछ जानवर उसके सिर चढ़े थे, उसकी हर समय चापलूसी करते रहते थे। बस, उन्ही की बात को प्रभास आँख मींचकर सच मान लेता था। वे जानवर किसी से भी अपनी दुश्मनी निकालने के लिए उसकी चुगली राजा से जाकर कर देते।

प्रभास बिना सच्चाई परखे उन जानवरों को तंग करता। प्रभास के चुगलखोर-चापलूस गुप्तचर सारे वन में घुमते रहे। उनके सामने किसी की इतनी हिम्मत भी न होती कि खुलकर बात कर पाए। प्रभास के द्वारा अकारण सताए हुए किसी जानवर से ढाढ़स के दो शब्द भी कह पाए।

दिन पर दिन ऐसे ही बीतते जा रहे थे। प्रभास की तानाशाही निरंतर बढ़ती जा रही थी। वह और उसके चापलूस जानवर गुलछर्रे उड़ाते, वे चाहे किसी को मार डालते और चाहे किसी को अपमानित कर देते। कुछ भी जाम करते। इसके विपरीत जो काम करने वाले जानवर थे , हमेशा पिसते, दिनभर काम करते और ऊपर से फटकार खाते।

प्रभास और उसके चापलूस सहायक चाहे किसी भी उनके कामों में दोष निकालते, उसकी निंदा करते। दूसरे जानवर कुछ बोलते नहीं थे। इसलिए भी प्रभास और उसके सहायक सिर पर चढ़ते जा रहे थे। अन्याय को चुप सहने से अन्यायी को बढ़ावा मिलता ही है।

उस दिन कपिल भैंसा बैठा था। तभी दूसरे वन से चेता नाम की लोमड़ी आई और उससे उदासी का कारण पूछने लगी। कारण जानकर चेता भड़क उठी। गुस्से से भरकर जोर से बोली– “उस दुष्ट प्रभास के अत्याचारी होने का कारण तुम सब ही हो। तुमने ही उसे सिर पर चढ़ाया है। तुम्हारी कायरता ने ही उसे बढ़ावा दिया है। तुम उसकी हर बात चुपचाप मान लेते हो इसलिए उसके अत्याचार बढ़ते जा रहे है। धिक्कार है तुम्हारी कायरता को।”

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तब तक मुक्ता हथिनी भी वही आ गई थी। उसने भी कहा– “अब तो अत्याचार ही अति हो गई है। हम सबको मिलकर उससे लोहा लेना ही होगा। “

मुक्ता हथिनी, चेता लोमड़ी और कपिल भैंसा ने मिलकर सभी जानवरों की सभा की। वे जानवर बड़ी मुश्किल से आए थे। प्रभास के डर से वे कायर और डरपोक हो गए थे। प्रभास कहीं सभा में उनका जाना न सुन ले। इस बात से वे सभी जानवर बड़े भयभीत हो रहे थे।

सभा के प्रारम्भ में सबसे पहले मुक्ता हथिनी बोली। उसने कहा — “प्यारे भाइयो और बहनों ! सबसे पहले तो मैं आपको धन्यवाद देती हूँ कि आप यहाँ इकट्ठे हुए है। मैं यह भी जानती हूँ कि आप मन ही मन डर रहे है, पर जरा विचार कीजिए कि आखिर आप डर क्यों रहे है ? डरना चाहिए गलत काम से, डरना चाहिए ईश्वर से।

अन्यायी से डरना तो कायरता है….., कायर बनकर हम अन्याय को बढ़ावा देते है। धिक्कार है हमे जो अन्याय और अत्याचार को चुपचाप सहते रहते है……. घुट-घुटकर जीते है। इससे तो वीरतापूर्वक अत्याचारी का सामना करके मर जाना सबसे अधिक अच्छा है। “

कपिल भैंसा कहने लगा — “साथियों ! वही शासक बनने योग्य होता है, जो सभी से समान व्यवहार करता है। जो समय पर कठोर भी होता है और आवश्यकता पड़ने पर कोमल व्यवहार भी करता है। उसी शासक को सब ही चाहते है। जिस शासक के ह्रदय में अपने सहायकों के लिए प्रेम और सहानुभूति नहीं है, वह कभी उनका मन नहीं जीत सकता। “

कालू भालू बोला– “धिक्कार है, हमे जो अयोग्य शासक के अधीन रहते है। धिक्कार है जो हम संख्या में सैकड़ो होकर भी उसके अत्याचार सहते रहते है। भाइयो ! उठो-जागो, मिलकर एकजुट होकर उस अन्यायी का सामना करो। “

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कालू भालू बोल ही रहा था कि तभी प्रभास वहां आ गया। आते ही वह दहाड़ने लगा। वह सोच रहा था कि हर रोज की भांति उसके डर से अभी सारे जानवर वहां से भाग जाएंगे, पर हुआ इसका उल्टा ही। मुक्ता के इशारे पर सारे जानवर प्रभास पर टूट पड़े। दूसरे ही क्षण वह अपनी जान बचाने के लिए वहां से तेजी से भागा। दूसरे जंगल में जाकर ही प्रभास ने साँस ली।

अब उस जंगल में दूसरा ही राजा राज्य करता था। वह प्रभास को तरह-तरह अपमानित करता। प्रभास अधिकतर मुँह छिपाए एक गुफा में पड़ा रहता था। मन ही मन पछताता रहता था — “हाय ! न मैं जानवरों को सताता और न वे यों विद्रोह करते।

अपने चापलूस सहायकों के बहकावे में आकर मैंने अपना ही सर्वनाश कर लिया। वे मुझे मिल जाएं तो एक-एक को खत्म कर दूँ ….।अपमान और प्रतिशोध के इन्ही भावों से वह कुढ़ता रहता था। कुछ ही दिनों में वह इतना दुबला हो गया कि मुश्किल से ही पहचाना जाता था। ”

इधर प्रभास के चापलूस जानवरों की कम दुर्दशा न थी। उस जंगल के सारे जानवर उनसे चिढ़े हुए थे। जहाँ भी वे निकलते सारे जानवर मिलकर हू-हुल्लड़ करने लगते। वे अच्छी तरह जानते थे कि उन्ही की चुगली के कारण प्रभास उन्हें सताया करता था। इसीलिए सारे जानवर उन जापलूसों को सबक सिखाने पर उतारू थे।

डर के कारण वे रात के अँधेरे में ही भोजन की तलाश में निकलते। थोड़ा-बहुत जो कुछ खाने को मिल जाता, उसी से जैसे-तैसे अपना गुजारा करते।प्रभास के सहायक जहाँ भी जुटते आपस में लड़ते-झगड़ते। सभी एक दूसरे को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराते और दोष देते। एक दिन उनका झगड़ा इतना बढ़ गया कि वे आपस में ही लड़कर मर गए।

अब जंगल के सारे जानवरों ने खूब खुशियां मनाई। प्रभास और उनके साथियों के न होने से वे बड़े प्रसन्न थे। सच है कि जहाँ अन्याय होता है, वहां विद्रोह की ज्वाला भी उत्पन्न हो जाती है। अन्याय और अत्याचार करने वाले शासक थोड़े समय चाहे भले ही मनमानी कर ले , पर अंत में उनकी दुर्दशा ही होती है।

तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह Sher ki Kahani इस कहानी में हमे सीख मिलती है कि हमे ज्यादा अहंकार नहीं करना चाहिए साथ ही दूसरे के बहकावे में आकर गलत कदम नहीं उठाना चाहिए। तो दोस्तों ऐसे ही Sher ki Kahani जैसी हिंदी सीखभरी कहानी के लिए हमारे website में आते रहिए।

गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।

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